रोज रोज तारों से मैं बातें हुं करती।
हर सवेरे उनसे कहती।
रातभर तुमने क्या देखा बताओ।
मेरे सपनों को दील से सजाओ।
चांदनी में उडतें उस घुग्घू को देखा।
मैंने तो सपने में आयना भी फेका।
चोरों को मैंने भागते देखा।
सपने में मैंने खुल के चीखा।
मैंने तो चाँद को शरमाते देखा।
परीयों को मैंने नाचते देखा।
बादलों की चादर में छुपते देखा।
महलों को मैंने गुनगुनाते देखा।
हां! अपने जैसे कई तारों को झुमते देखा!
अरे, तुमने तो जुगनुओं को देखा!
Khubsurat lafzon ki khubsurat kahani hai,
Kisi ko mohabbat se
Toh kisi ko khawabon se sajani hai…
Very well penned
मोहब्बत अक्सर, धोखा दे जाती है…
ख्वाबों को तो, खुशियाँ बाटने से फुर्सत ही नहीं मिलती…
इसलिए वही दुनिया खुबसूरत लगती है, जो बचपने में गुजर जाती है…
Ashish Sharma @thatsmeashi...
Ye bhaut pyara loga muje
“Sapno me main khul k cheeka”
Raatein kuch is tara kat rhi hai
Na samaj ka pta chal rha hai, na dard ka
Raatein kuch is tara kat rhi hai
Na tare gin pa rha hu, na girte aasu
दर्द बोहोत खुबसूरत एहसास है, उसे कभी आसुओं में गिनने की भुल मत करना…
ये बात अकसर लोगों को तबतक नहीं समझती, जबतक ये एहसास उनसे छिना नहीं जाता…